भाई जब बन जाता है
शत्रु अपने भाई का,
संवाद ख़तम हो जाता है
खून बहा दूँ भाई का
तब उसके मन में आता है.
विवेकहीन हो क्रोध के बस में
वाह्य शत्रु को मित्र बनाकर,
भाई का खून बहाने भाई
मेहमान बनकर आता है.
बही का खून बहा कर शत्रु
अन्यत्र पलायन कर जाता है,
भाई के खून का मुजरिम बनकर
भाई जेल चला जाता है.
शत्रु तब घर में घुस जाता
परिजन पर येह्शन जताता,
धौंश भी उनपर खूब जमाता
धन इज्जत पर हाथ लगता.
एक की वीवी वेव बनकर
दूजा बेबस कैदी बनकर,
बाह्य शत्रु का कैदी बनकर
अपनी करनी पर रोता है.
Monday, December 8, 2008
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